रुद्रप्रयाग।
एक ओर सरकार गुणवत्ता युक्त शिक्षा देने के बड़े-बड़े दावे करती है, वहीं दूसरी ओर जनपद रुद्रप्रयाग की शिक्षा व्यवस्था का सच यह है कि यहां 95 प्रतिशत से अधिक विद्यालय बिना मुखिया के संचालित हो रहे हैं। विद्यालयों में प्रधानाचार्य, प्रधानाध्यापक और प्रवक्ताओं के अभाव ने व्यवस्था को खोखला कर दिया है।
रिक्त पदों का भयावह आंकड़ा

सहायक अध्यापक (LT) — स्वीकृत 786 | कार्यरत 656 | 130 पद रिक्त

महिला संवर्ग (LT) — स्वीकृत 22 | 5 पद रिक्त

प्रवक्ता संवर्ग — स्वीकृत 701 | कार्यरत 342 | 359 पद रिक्त

प्रधानाध्यापक (पुरुष) — स्वीकृत 27 | 26 पद रिक्त

प्रधानाध्यापिका (महिला) — स्वीकृत 01 | 1 पद रिक्त

प्रधानाचार्य — स्वीकृत 76 | कार्यरत 5 | 71 पद रिक्त

राजकीय बालिका इंटर कॉलेज – दोनों में प्रधानाचार्य का पद रिक्त

मिनिस्ट्रियल कर्मचारी — स्वीकृत 203 | कार्यरत 167 | 36 पद रिक्त

राजकीय शिक्षक संघ के जिला अध्यक्ष आलोक रौथान ने कटाक्ष करते हुए कहा,
> “सरकार की नीतियों में गुणवत्ता परक शिक्षा की बातें तो खूब लिखी जाती हैं, लेकिन हकीकत यह है कि जनपद के अधिकांश विद्यालय मुखियाविहीन हैं। क्या बिना कप्तान के कोई टीम मैच जीत सकती है? फिर बिना प्रधानाचार्य के विद्यालयों से गुणवत्ता की उम्मीद करना क्या न्यायसंगत है?”
जिला मंत्री शंकर भट्ट ने विभागीय कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए कहा,

> “आज तक अधिकतर विद्यालयों में निशुल्क पाठ्यपुस्तकें नहीं पहुंची हैं, लेकिन विभाग ने अर्धवार्षिक परीक्षा का कार्यक्रम जारी कर दिया है। शिक्षक शिक्षण कार्य के साथ-साथ मिनिस्ट्रियल, चतुर्थ श्रेणी और स्वच्छता का कार्य भी करने को बाध्य हैं। ऐसी अव्यवस्थित प्रणाली शिक्षा की गुणवत्ता को कैसे सुधार पाएगी?”

संरक्षक नरेश कुमार भट्ट जी ने स्पष्ट कहा कि प्रवक्ता, प्रधानाध्यापक और प्रधानाचार्य पदों पर पदोन्नति प्रक्रिया जानबूझकर लंबित रखी जा रही है।

> ” जिला उपाध्यक्ष शीशपाल पंवार ने कहा कि हम लंबे समय से आंदोलनरत हैं, लेकिन सरकार और विभाग का मौन गहरी साज़िश की ओर संकेत करता है। ग्रामीण अंचल के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित रखना क्या नियोजित लापरवाही नहीं है?”

संयुक्त मंत्री दीपक नेगीने कहा कि “यदि रिक्त पदों को प्राथमिकता के आधार पर नहीं भरा गया तो शिक्षक संघ जनांदोलन को मजबूर होगा। यह संघर्ष केवल शिक्षकों का नहीं, बल्कि जनपद के हर बच्चे के भविष्य का है।”

जिला प्रवक्ता अजय भट्ट ने कहा कि जब शिक्षक प्रशासनिक काम करेंगे, सफाई भी देखेंगे, रिकॉर्ड भी बनाएंगे और मुखिया भी नहीं होगा — तो शिक्षा की गुणवत्ता कैसे सुधरेगी?
क्या सरकार इस वास्तविकता को स्वीकार कर ठोस कदम उठाएगी, या फिर ‘गुणवत्ता शिक्षा’ का नारा केवल पोस्टरों और भाषणों तक सीमित रहेगा?

> रुद्रप्रयाग इंतज़ार में है — शिक्षा को ‘प्रणाली’ नहीं, ‘प्राथमिकता’ बनाने का।

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