देवभूमि उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति और विरासत अपने आप में अनूठी है। देवभूमि में प्राचीनकाल से अपने अभीष्ट को पाने के लिए महाभारत के काल में पांडवों का अपने कुल व गोत्र हत्या के पाप प्रायश्चित करने केदारभूमि आना हो या यहां के मठ-मंदिरों का पौराणिक महत्व इस विरासत को और समृद्ध बनाता है। जनपद रुद्रप्रयाग जिले के प्रसिद्ध जाख मेले को भव्य बनाने के लिए देवशाल स्थित विंध्यवासिनी मंदिर के प्रांगण में हक हकूकधारी एवं ब्राह्मणों द्वारा मेले की समय सारणी को लेकर पंचांग देखकर दिन तय किया गया जाता है। इस वर्ष 14 अप्रैल को जाख मंदिर में धधकते अंगारों पर भगवान यक्ष नृत्य कर श्रद्धालुओं की बलाएं लेते हुए भगवान यक्षराज के दर्शन श्रद्धालुओं ने किये।
जाख राजा की लोक मान्यता- जनश्रुतियों के अनुसार जब प्राचीनकाल में स्थानीय लोग अपने मवेशियों को बुग्यालों की ओर चुगाने के लिए जाते थे तो वहां पर एक पालसी (पालसी – जंगल में मवेशी चुगाने वाले) ने एक पत्थर को अपनी झोली में ऊन कातने के उद्देश्य से डाल दिया। पालसी ने जो पथ्थर अपने झोले में रखा था उस पथ्थर का धीरे-धीरे आकार और भार बढ़ने लगा और वह पालसी अपने मवेशियों के साथ वापस केदारघाटी अपने घर को आ गया।
पालसी जब घर आता है तो इसके बाद देवशाल गावं की भूमि में झूला टूट जाता है और यह पत्थर नीचे गिर जाता है। रात्रि को पालसी के सपने में भगवान दर्शन देते हैं और इस पत्थर को वहीं पर स्थापित करके पूजन-अर्चना करने को कहतें हैं। अगले दिन प्रातः को पालसी इस भारी पत्थर को स्थापित करता है। स्थापना के पश्चात तब से लेकर वर्तमान समय तक अपनी परम्परा का निर्वहन हक-हकूकधारी करते हुए आ रहे हैं इस स्थान पर भगवान यक्ष की पूजा की जाती है। वैशाखी के दूसरे दिन गुप्तकाशी से 5 किलोमीटर दूर जाखधार में जाख मेले का आयोजन होता है। जाख मेले में देवशाल, नारायणकोटी, कोठेड़ा के ग्रामीण शामिल होते हैं। इसके अलावा रुद्रपुर, बणसू, देवर, सांकरी, ह्यूण, नाला, गुप्तकाशी, गढ़तरा, सेमी, भैंसारी समेत कई गांवों के ग्रामीण मेले को सफल बनाने में सहयोग करते हैं। मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व कोठेड़ा और नारायणकोटी के भक्तजन नंगे पांव जंगल में जाकर लकड़ियां एकत्रित कर जाख मंदिर में लाते हैं. जाख मंदिर में कई टन लकड़ियों से भव्य अग्निकुण्ड तैयार किया जाता है।
दूसरी जनश्रुति की मान्यता है – महाभारत युद्ध के पश्चात गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति के लिए जब पांडव भगवान महादेव की खोज में केदारनाथ को चल पड़े तो गुप्तकाशी के लगभग 6 किलोमीटर आगे जाख तोक में कुछ दिन विश्राम किया। द्रोपदी को प्यास लगने पर पांडव तालाब के किनारे पहुंचे, तब भगवान यक्ष ने उनसे पांच प्रश्न किए थे वह इसी स्थान पर भगवान यक्ष ने पांडवों से प्रश्न किए थे। जब भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव यक्षराज के सवालों का जबाब नहीं दे पाए तो इसी स्थान पर बेहोश हो गए थे।
चारोँ भाईयों को वापस न आता देखकर युधिष्ठिर तालाब के किनारे पहुंचे तो उन्होंने देखा कि सभी पांडव बेहोश होकर जमीन पर गिरे हैं। ज्यों ही युधिष्ठिर ने तालाब से जल पीना चाहा, तो यक्ष प्रकट हो गए। उन्होंने युधिष्ठिर से भी पांच प्रश्न किए और इन प्रश्नो का सही उत्तर सुनकर यक्ष महाराज ने खुश होकर बेहोश पांंडवों को होश में लाया गया। पांडवों की परीक्षा के बाद से यक्ष राज की आज तक यहां पर यक्ष की पूजा-अर्चना की जाती है। नर पश्वा पर यक्षराज अवतरित होते हैं तो बताया जाता है, कि धधकते अंगारों पर नृत्य करने से पूर्व नर पश्वा को इस कुंड में जल नजर आता है।
जाख देवता यक्ष व कुबेर के रूप में भी माने जाते हैं। उनके दिव्य स्वरूप की अलौकिक लीला प्रतिवर्ष अग्नि कुंड में दहकते अंगारों पर नृत्य करते हुए विश्व कल्याण की कामना करते हैं तथा अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि से बचने के लिए भी जाख देवता की पूजा की जाती है। इसके साथ ही जिस भक्त को जाखराजा का आशीर्वाद मिलता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण हो जाती है।
उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर अधिक आश्रित है पर पर्यटन प्रदेश के नाम से सरकार के अनेकों प्रचार पसर कार्यक्रम होतें हैं पर पर्यटन विभाग इस मेले का व्यापक प्रचार प्रसार करता तो देश-विदेशों से भी भक्त मेले अवश्य पहुंचते। इससे यहां पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता। जाख मंदिर में सदियों से चले आ रहे मेले को बढ़ावा देने के लिए सरकारी एवं पर्यटन स्तर पर कोई प्रयास तक नहीं किए गए हैं। इसके चलते देश-विदेश के श्रद्धालु यहां नहीं पहुंच पा रहे हैं।