लंबे संघर्षों के बावजूद आज भी सेरा-तेवाखर्क के ग्रामीणों की सड़क की मुश्किलें नहीं हुई कम ।

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गैरसैंण – आज उत्तराखंड बने हुए 23 वर्ष पूर्ण होने जा रहा है लेकिन आज भी पहाड़ी जिलों की एक तिहाई आबादी बिना सड़क से मिलो पैदल चलने को मजबूर हो रखी है । चलिए अब रुख करते हैं एक ऐसी खबर की ओर जहां सरकारों के विकास के दावों की पोल खुलती भी नजर आ रही हैं। ऐसा हम किसलिए कह रहे हैं चलिए आपको बताते हैं।आज हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड आंदोलनकारियों की भावनाओं और सहमति की उत्तराखंड की राजधानी और सरकार की घोषित ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण क्षेत्र की। उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी भराड़ीसैंण- गैरसैंण का एक बहुत ही नजदीकी क्षेत्र है सेरा-तेवाखर्क, जहां के लोगों के सड़क मार्ग की मांग के लिए एक लंबे संघर्षों के बावजूद भी आज उनकी किस्मत में पैदल ही चलना लिखा है। यहां के लोगों का कहना है कि उनके गांव में कोई बुजुर्ग, नौजवान, बच्चे बीमार हो जाते हैं या किसी महिला को प्रसूति के लिए अचानक अस्पताल लेकर जाना होता है तो उनको तीन -चार किलोमिटर पहाड़ी ऊबड़-खाबड़ और खतरनाक जंगल के रास्तों से बीमार लोगों को डंडी के सहारे कांधों पर लादकर मुख्य सड़क तक लाना और ले जाना पड़ता है,और ऐसे में पैदल रास्ते में हर समय अनहोनी होने की संभावना व चिंता बनी रहती है।आज भी जैसा कि आप अपने स्क्रीन पर देख रहे हैं कि एक बुजुर्ग महिला को किस तरह से यहां के ग्रामीण खतरनाक रास्ते से होकर अस्पताल लेकर जा रहे हैं। दुर्भाग्य की बात देखिए कि ग्रीष्मकालीन राजधानी के नज़दीकी क्षेत्र के लोगों को आज भी मात्र चार किलोमीटर एक सड़क के लिए किस तरह तरसना पड़ रहा है तो हम इसीलिए कहा रहे हैं कि सरकारों के विकास की पोल भी खुल रही हैं। दरअसल सेरा-तेवाखर्क के ग्रामीणों की लंबें समय से यहां के लिए एक मोटर मार्ग की मांग रही है और बार बार गुहार लगाने से भी जब सड़क मंजूर नहीं हुई तो यहां के लोगों ने आंदोलन का रास्ता अपनाया और जब आंदोलन से भी किसी पर कोई असर नहीं हुआ तो पिछले साल यहां के महिलाओं,पूरूषों, बच्चों और युवाओं ने अपनी सड़क स्वयं ही बनाने का फैसला लेकर सड़क बनानी शुरू की।इसी बीच लोगों के आयना दिखाने के बाद सरकार और जनप्रतिनिधी कुछ पसीजे और यहां मोटर मार्ग स्वीकृत कर सड़क निर्माण के टेंडर भी कर दिए गए और सड़क बनानी शुरू हो गई। लेकिन आज यहां के लोगों का आरोप है कि सड़क का कहीं कोई अता-पता ही नहीं चल पा रहा है कार्यदाई संस्था आधा अधुरा काम करके चंपत हो गया और इस बात की शिकायतें लोक निर्माण विभाग से लगातार करने पर हमेशा अश्वासन के अलावा कुछ कार्यवाही नहीं की जाती है। ऐसे में साफ है कि सरकार तो योजनाओं को स्वीकृति दे देती है लेकिन जमीनी स्तर पर सरकार के अधिकारी ही विकास पर पलीता लगाने से पीछे नहीं रह रहे हैं।लोगों का यह भी कहना है कि जो सड़क कुछ कुछ काटी गई है उससे उनके पैदल आने जाने वाले रास्ते भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं जिससे उनकी मुसीबतें और बढ़ गई हैं। लोगों का कहना है कि सड़क तो स्वीकृत हुई कुछ आधा अधुरा काम भी हुआ है लेकिन रामगंगा नदी पर पुल जब-तक स्वीकृत नहीं हुआ तब-तब अगर यह सड़क बन भी जाती है तो उसका लाभ नहीं मिल पायेगा। उन्होंने कहा कि गांव में अधिकांश युवा रोजगार के लिए गांव से बाहर रहते हैं और बुजुर्ग, महिलाएं और पंद्रह से अट्ठारह आयु वर्ग के बच्चे ही गांव में रहते हैं और ऐसे में बीमर लोगों को अस्पताल पहुंचाना बहुत ही मुश्किल हो जाती है। सेरा-तेवाखर्क के ग्रामीणों ने कहा कि शासन प्रशासन को उनकी सड़क की स्थिति को देखते हुए कार्यदाई संस्था पर कार्रवाई करते हुए उनकी सड़क को शीघ्र बनाया जाए ताकि उनकी समस्याओं में कुछ कमी आ सके।
जिस प्रकार से यहां के लोगों को सड़क के लिए आज भी तरसना पड़ रहा है और शासन प्रशासन सड़क स्वीकृत होने और निर्माण कार्य भी शूरू होने के बाद जिस तरह सड़क अधर में लटकी हुई है तो ऐसे में सरकार को भी चाहिए कि वह अपने विकासोन्मुखी योजनाओं पर कड़ी नजर रखने के लिए एक विशेष तंत्र को ईजाद करे ताकि सरकार के विकास के दावे असल तौर पर जमीन पर भी दिखाई दे और सरकार पर लोगों का विश्वास भी बना रहे कि सरकार अपने नागरिकों के लिए तत्पर है।

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